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हम नवरात्री क्यों मानते है ? जानिए इसके कुछ अभूतपूर्व महत्व

नमस्कार आज हम आदि शक्ति दुर्गा और उससे जुड़ी एक कथा के बारे में जानेंगे दोस्तों को पूत कपूत हो सकता है परंतु माता कभी कुमाता नहीं होती माता का ह्रदय ही ऐसा है.


माता का प्रेम सहज होता है माता का प्रेम सभी सांसारिक प्रेम में उत्कृष्ट है कारण यह निस्वार्थ है यह प्रतिदान की अपेक्षा नहीं करता ऐसी ही स्थिति सभी माताओं की है चाहे वह किसी भी प्राणी या योनि की हो सांसारिक माताओं की यह स्थिति है. 



तो फिर जग माता के विषय में क्या कहना सृष्टि की संचालन के लिए या यूं कहें कि किसी भी कार्य के लिए शक्ति की आवश्यकता है बल्कि शक्ति हीनता की कल्पना ही निरर्थक है लेकिन शक्ति आती कहां से है.


इसका अभियान शिकोज कहां है और हम इस अविनाशी कोष को कहते क्या है दोस्तों हम इस शक्ति के अविनाशी कोष को आदिशक्ति मानते हैं. सभी प्रकार की शक्तियां यहीं से नियंत्रित होती है उन सभी इसी में विलीन हो जाती है. 


और यह भंडार भरा का भरा रहता है इसी आदि शक्ति से त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश सृष्टि के संपूर्ण क्रियाकलाप सृजन पालन एवं संघार का निर्वहन करते हैं .


जनरेशन पालन अथवा संचालन मतलब ऑपरेशन संहार डिस्ट्रक्शन अंग्रेजी के इन शब्दों के प्रथम अफसरों द्वारा संचालित शब्द गॉड इन्हीं त्रिवेदों त्रिदेव का समग्र रूप है जो आदि शक्ति द्वारा ही प्रेरित एवं संचालित होता है.


जग माता आदिशक्ति जब अपने देव संतानों के असुरों द्वारा की गई प्रार्थना से सहमत होकर चीख-पुकार सुनती है तो असुरों के नाश के लिए शरीर रूप धारण करती है, अनेक अवसरों पर भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होती हैं दुर्गम नाम का एक असुर अपनी कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्माजी से वर पाकर वेदों को अपने अधिकार में ले लेता है.


एवं उसे लूट कर देता है अर्थात उसने अपने पराक्रम से सब को भयभीत कर सारे वेद वैदिक काम बंद करवा दिया वर्षा बंद हो गई बताओ और अकाल पड़ गया पेड़ पौधे झुलस गए नदी नाले सूख गए देवों से यह पीड़ा देख ना गई सबने मिलकर सभी ने जगदंबा मां की स्तुति की जगदंबा से देखा ना गया वे प्रकट हुई बच्चों की चीख-पुकार सुनकर उनका ह्रदय द्रवित हो उठा आंखें छलक गई .


सैकड़ों आंखों से अश्रु धारा बह चली 9 दिनों तक यह धारा बहती रही अंत में माता ने घोर संग्राम कर एवं दुर्गम दैत्य का संघार किया ,जग माता की उस रूप को दुर्गा कहते हैं. दोस्तों इस घटना के स्मरण करने के लिए और उस शक्ति शालिनी माता की ममता या करुणा का प्रसाद हमें भी प्राप्त हुए. 


इस भावना एवं कामना के साथ हम दुर्गा माँ की उपासना एवं आराधना 9 दिनों तक करते हैं दोस्तों शक्ति स्वरुप जगदंबा दुर्गा की अनन्य भक्ति पूर्व में उपासना से आध्यात्मिक बल का विकास होता है. एवं आत्मा सबल तथा निर्भीक होता है. 


भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के आदि संविधान करता मनु ने कहा है नारी का पूजन जहां हो वहीं देवता विराजमान होते हैं.


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 नारी को जोश भारतीय संस्कृति में है शायद ही विश्व के किसी भी संप्रदाय में यह नारी माता पत्नी अथवा पुत्री रूप में हो सर्वदा आदरणीय के रूप में जगदंबा माता आदिशक्ति ही सती अथवा पार्वती रूप में एक चिता का भस्म लपेटे हुए विष पीने वाले लोग धड़क दिगंबर जटाधारी सबको गले में हार बनाने वाले बेल पर आसीन कपाली भूत प्रेतों के सरदार शंकर को वरण कर उसे महादेव अर्थात देवों में श्रेष्ठ बना दिया. 


पति के दक्ष प्रजापति के यज्ञ में आत्मदाह कर लेने पर शिवजी उन्मत्त हो गए शक्ति से वहीं से वह मात्र रह गए यही आदिशक्ति करुणामूर्ति मां किसी के लिए मातृ शक्ति के रूप में तो किसी के लिए कुमारी रूप में अपने को परिवर्तित कर लेती हैं.


यही स्त्री पुरुष का युगल रूप धारण कर अर्धनारीश्वर बन जाती है कर्म पुराण के अनुसार अर्धनारीश्वर के पुरुष अंश से प्रकट हुए एवं शक्ति रूप से शक्तियां उत्पन्न हुई यद्यपि यह सत्य नित्य एवं सनातन है. सबकी जननी भूत एवं मूल प्रकृति ईश्वरीय है निर्गुणा है. 




तथापि कार्य करने के लिए सगुना बन जाती है आदि शक्ति जगदंबा कि हम आराधना करते हैं दुर्गा पूजा संपूर्ण हिंदू समाज में किसी ना किसी रूप में मनाया जाता है, हमारे यहां वर्ष में दो बार नवरात्र पूजा मनाया जाता है. 


वसंत ऋतु के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरा शरद ऋतु के अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में चैत्र मास की दुर्गा पूजा को बसंती पूजा एवं अश्विन मास की पूजा को शारदीय पूजा कहते हैं. इसमें अश्विन मास की पूजा दुर्गा पूजा यह ज्यादा प्रचलित है इसका प्रधान कारण यह है शरद ऋतु का समय जो वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है. 


और कृषक वर्ग फसल रोपण से के काम से निवृत हो जाते हैं फुर्सत ही फुर्सत है साथ ही शरद कालका अपना आनंद नगर में ना ठंड न वर्षा आगमन आवागमन में कोई बाधा नहीं समय का अभाव नहीं आता 10 दिनों तक मुख्य पूजा एवं महीनों पहले से उसकी तैयारी एवं सप्ताह बाद उसके स्मरण के लिए शरद ऋतु से अधिक उपयुक्त और समय नहीं हो सकता .


मेरे अनुमान से यही कारण शारदीय दुर्गा पूजा की ममता ठीक है लोगों की ऐसी मान्यता है कि इसी विजयादशमी के दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी एवं अश्विन शुक्ल पक्ष अर्थात विजयादशमी के 5 दिनों के बाद उनका राज्य रोहन हुआ था. 


परंतु पौराणिक तथ्य पर यह सही नहीं लगता मास की बसंती दुर्गा पूजा हो अथवा अश्विन मास की शारदीय दुर्गा पूजा दोनों कालो की दुर्गा पूजन विधि समान है दुर्गा की प्रतिमा के साथ अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा भी रखी जाती है कहीं कहीं यह सारी प्रतिमाएं एक ही वेदी पर तथा कहीं-कहीं यह अलग-अलग विधियों पर स्थापित रहती है .


परंतु स्थान क्रम सदैव एक ही रहता है भगवती दुर्गा की इन पांचों में क्रमशः लक्ष्मी गणेश विजया नामक योग योगिनी तथा वाम पर्स में सरस्वती कार्तिकेय एवं जया नामक कम योगिनी रहती है. 


यह सभी दुर्गा परिवार के अंतर्गत आते हैं इसके अतिरिक्त दुर्गा का वाहन महासंघ और महिषासुर की भी पूजा होती है दुर्गा पूजा चारों वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र सभी कर सकते हैं .कई लोग अपने घरों में ही पारिवारिक पूजन करते हैं. 




एवं विधि पूर्वक दुर्गा पाठ करते हैं परंतु सभी इस पूजा के लाभ के समान भागी बने इस हेतु सामूहिक पूजा भी प्रचलित है .


तो दोस्तों यह ठीक कुछ जानकारी जो नवरात्र से जुड़ी है यह कथा जो नवरात्र से जुड़ी है और उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आया होगा अगले पोस्ट तक के लिए नमस्कार .


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